पंचमी – त्यौहार, प्रथा और आधुनिक पहलु
जब हम बात करते हैं पंचमी, हिंदू कैलेंडर की पाँचवीं तिथि, जो कई देवी‑देवताओं के सम्मान और विशेष व्रत के साथ मनाई जाती है. इसे पंचमी तिथि भी कहा जाता है, और यह ऋतु‑परिवर्तन, कृषि और आध्यात्मिक कार्यों से जुड़ा होता है। इस दिन लोग पूजा‑पाठ, उपवास और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जिससे सामाजिक एकजुटता बढ़ती है।
पंचमी के प्रमुख रूप
नाग पंचमी, सापों की पूजा और संरक्षण के लिए मनाया जाने वाला उत्सव में ग्रामीण इलाकों में अक्सर साँपों की प्रतिमा स्थापित की जाती है, दिये जलाए जाते हैं और विशेष व्रत रखा जाता है। यह रूप प्रकृति के साथ संतुलन बनाये रखने की इच्छा को दर्शाता है, और स्थानीय कहानियों में सर्पणियों को अभिषेक देकर बुराई से सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। कई शहरों में तालाब में स्नान कर के लोग अपने स्वास्थ्य और सु‑सुख की कामना करते हैं।
सरस्वती पूजा, ज्ञान और कला की देवी सरस्वती को समर्पित पूजा भी पंचमी पर बहुत प्रचलित है। छात्र, शिक्षक और कलाकार पुस्तक, वीणा और संगीत वाद्य यंत्रों को साफ़‑सुथरा कर सरस्वती माँ को अर्पित करते हैं। इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है, क्योंकि सरस्वती का वार्षिक रंग वही है। स्कूल और कॉलेज में विशेष प्रार्थनाएं की जाती हैं, जहाँ नई कक्षा के प्रवेशकों को पाठ्यपुस्तकों की दान‑संपत्ति दी जाती है।
हिंदू कैलेंडर की तिथियाँ, चंद्रमा की अवस्था के आधार पर निर्धारित तिथियाँ पंचमी को विशेष महत्व देती हैं। पंचमी का निर्धारण नववर्ष के चंद्र महीने के पाँचवें दिन होता है, और यह विभिन्न ऋतुओं के साथ जुड़ा रहता है – जैसे वसंत पंचमी में सरस्वती की वासना और शरद पंचमी में पवन में पत्तियों की सजावट। इस कैलेंडर के आधार पर कृषि कार्यों की समय-सारिणी तय होती है, जिससे किसान इस दिन को विशेष अनाज बुआई या फसल कटाई के शुभ कामकाज के लिए मानते हैं।
पूरे भारत में पंचमी के साथ विभिन्न क्षेत्रीय विशेषताएँ भी जुड़ी हैं। उत्तर भारत में लोग खीर और पान की थाली सजाते हैं, जबकि दक्षिण में कांच के बर्तनों में दूध उबाल कर दान‑संपत्ति देते हैं। कुशिंग वचन, बड़ाई और गीत‑बज रहा गणेश की धुनें अक्सर इस दिन सुनाई देती हैं। इस विविधता से स्पष्ट होता है कि पंचमी सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव का केंद्र बिंदु है।
आज के डिजिटल युग में पंचमी को सोशल मीडिया पर भी बड़े पैमाने पर उत्सव के रूप में दिखाया जाता है। लोग फोटो‑शेयरिंग ऐप्स पर अपने पूजा‑स्थल, सजावट और व्यंजन दिखाते हैं, जिससे परम्पराओं का नया स्वरूप बनता है। यही कारण है कि पंचमी पर कई समाचार पोर्टल, जैसे साई समाचार, विशेष ख़ास लेख, लाइव अपडेट और विशेषज्ञ राय पेश करते हैं, जिससे पाठक कवरेज की गहराई समझ सकें। नीचे आप विभिन्न लेखों की सूची पाएँगे, जिनमें पंचमी के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत रिपोर्ट और विश्लेषण मौजूद हैं।

Chaitra Navratri 2025 की पंचमी: Skandamata की पूजा, रंग और समय
3 अप्रैल 2025 को मनाई जाने वाली चैतरा नववर्ष की पंचमी को माँ Skandamata की पूजा से सजाया गया है। इस दिन शाकाहारी उपवास, पीली वस्त्रधारा और विशेष अर्चना का विशेष महत्व है। पुजा मुहूर्त ब्रह्म मुहूर्त में निर्धारित है और पंचमी तिथि का समय विस्तार से बताया गया है।
और देखें