Chaitra Navratri 2025 की पंचमी: Skandamata की पूजा, रंग और समय

चैतरा नववर्ष 2025 के पाँचवें दिन, यानी 3 अप्रैल को, माँ Skandamata को सबसे अधिक सम्मान दिया जाता है। यह दिव्य माँ दुर्गा का पाँचवाँ रूप है, जो अपने छोटे बेटे कार्तिकेय (स्कंद) की माँ के रूप में मातृत्व, सुरक्षा और ज्ञान का प्रतीक मानी जाती है। इस दिन की पूजा सिर्फ साधारण अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन‑संकट में शांति और स्पष्टता की खोज है।

Skandamata की पूजा विधि और महत्व

पूजा की शुरुआत सुबह ब्रह्म मुहूर्त (लगभग 4‑5 बजे) से करनी चाहिये। सबसे पहले स्नान कर साफ‑सुथरे पीले कपड़े पहनें। घर के मोहन के पास एक साफ‑सुथरा मंच तैयार करें, जहाँ माँ की मूर्ति या फोटो रखें। चार‑हाथ वाली देवी के दो हाथ में कमल के फूल, एक में अभय मुड़, और चतुर्थ हाथ में नन्हा स्कंद धारण होता है; इस प्रतिमा के सामने दिये, अगरबत्ती और घंटी रखिए।

मुख्य अर्पण में पीलेगुलाब, मथुरा का केसर, और केला शामिल है – क्योंकि ये सभी माँ Skandamata की पसंदीदा मानी जाती हैं। अर्पण के बाद मंत्र त्रिपादि शंकराचरण या दुर्गा मंत्र का उच्चारण करें। इस समय ध्यान इस बात पर केंद्रित रखें कि माँ हमारी सभी तकलीफों को दूर करेंगी और हमें स्पष्ट सोच प्रदान करेंगी।

यदि आप सूची के रूप में अर्पण को व्यवस्थित करना चाहते हैं तो नीचे दी गई लिस्ट मददगार होगी:

  • पीले गुलाब या जैन (मारिगोल्ड) के फूल
  • संतरे या केले के पके टुकड़े
  • शुद्ध शंख (शंख ध्वनि के लिए) और धूप
  • आवश्यक हो तो मीठे फल और चंदन का चेला
पंचमी तिथि, शुभ रंग और chakra संबंध

पंचमी तिथि, शुभ रंग और chakra संबंध

पंचमी तिथि 2 अप्रैल को 2:35 एएम से शुरू हुई और उसी दिन 11:52 पीएम तक चली। इस अवधि में विशेषतः सुबह के शुरुआती घंटे, जब ऊर्जा उत्कर्ष पर होती है, पूजा का समय सबसे उत्तम माना जाता है।

इस दिन का शुभ रंग पीला है। पीले रंग को धारण करने से मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और ज्ञान की प्राप्ति में सहायता मिलती है। लोग पीले वस्त्र पहनते हैं, पीले फूल सजाते हैं और घर के कोने में पीली मत्ती भी जलाते हैं।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार Skandamata विष्णु के शुद्धता चक्र (विशुद्धा चक्र) से जुड़ी है, जो गले के स्तर पर स्थित है और संवाद एवं अभिव्यक्ति को नियंत्रित करता है। माँ की पूजा से यह चक्र संतुलित होता है, जिससे शब्दों में स्पष्टता और आत्मविश्वास आ जाता है।

कहानियों में एक दानव टरकासुर ने ब्रह्मा जी से अमरत्व माँगा, परन्तु ब्रह्मा ने उससे शर्त रखी कि केवल शिव‑पार्वती के पुत्र ही उसे मार सके। इस शर्त से जन्मा कार्तिकेय ही इस दानव को परास्त करता है और पार्वती मातृसत्व के कारण Skandamata के रूप में पूजनीय बनती है। यह कथा मातृत्व की शक्ति को दर्शाती है।

पंचमी के अवसर पर कई लोग नाथ पीठ या स्कंद माता मंदिरों में जाकर सामूहिक आरती में भाग लेते हैं। एखेमास्थानी उपवास रखने वाले लोग केवल फल, नारियल और शकरा ग्रहण करते हैं, जबकि अन्य लोग सिर्फ शुद्ध पानी से उपवास रखते हैं। इस दिन को नाग पूजन या स्कंदषष्टी के रूप में भी मनाया जाता है।

5 टिप्पणि

Arpit Jain
Arpit Jain

सितंबर 29, 2025 at 03:24 पूर्वाह्न

ये सब रंग और मंत्र की बातें तो अच्छी हैं पर क्या कोई जानता है कि स्कंदमाता की मूर्ति में चारों हाथ का विवरण अक्सर गलत दिखाया जाता है? असल में तीन हाथ होते हैं और चौथा तो बच्चे को सहारा देने का जोर देता है, न कि उसे पकड़े रखने का। ये सब फोटो वाले लोग अपने फोन से घूंट लेकर फूल चढ़ाते हैं, बाकी कुछ नहीं जानते।

divya m.s
divya m.s

सितंबर 29, 2025 at 07:01 पूर्वाह्न

पीला रंग? बस इतना ही? माँ की शक्ति को रंग से समझने की हिम्मत कैसे हुई? ये धार्मिक नाटक तो हर नवरात्रि में दोहराया जाता है जबकि असली बात तो ये है कि माँ ने अपने बेटे को अकेले लड़ने भेजा और उसकी जीत का श्रेय अपने नाम कर लिया। आज भी लड़कियों को बस शांत रहने का नाम देकर उनकी आवाज़ दबा दी जाती है। ये पूजा नहीं, एक नियंत्रण की रचना है।

Karan Raval
Karan Raval

सितंबर 29, 2025 at 22:30 अपराह्न

अगर आप इस दिन को सच में महसूस करना चाहते हैं तो बस एक बच्चे को गले लगाएं और उसे बताएं कि वो अकेला नहीं है। न कोई मंत्र, न पीला कपड़ा, न कोई फूल - बस एक गले लगाने का लम्हा। ये ही सच्ची स्कंदमाता की पूजा है।

PRATAP SINGH
PRATAP SINGH

सितंबर 30, 2025 at 23:01 अपराह्न

आप सब ये बातें तो बड़े आसानी से कर रहे हैं पर क्या आपने कभी श्री विष्णु सहस्रनाम का अध्ययन किया है? विशुद्धा चक्र की व्याख्या तो शंकराचार्य के ग्रंथों में ही सही तरीके से दी गई है। ये फेसबुक वाली जानकारी जिसे आप लोग विश्वास कर रहे हैं, वो तो बस एक ब्लॉग पोस्ट है। असली ज्ञान तो संस्कृत ग्रंथों में है।

Akash Kumar
Akash Kumar

अक्तूबर 1, 2025 at 10:48 पूर्वाह्न

स्कंदमाता की पूजा का असली अर्थ तो यह है कि मातृत्व केवल जन्म देने का नाम नहीं, बल्कि अपने बच्चे को स्वतंत्र बनाने की शक्ति है। जब पार्वती ने स्कंद को युद्ध के लिए भेजा, तो उन्होंने अपनी आत्मा को भी बलिदान कर दिया। यही तो वास्तविक मातृत्व है - जो आज के समय में हम भूल गए हैं।

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