आतंकवादी फंडिंग केस – क्या है, क्यों जरूरी है और हाल के उदाहरण
जब भी कोई बड़ा आतंकवादी हमला समाचार में आता है, अक्सर पूछते हैं‑ ‘इतने पैसे कहाँ से आए?’ इस सवाल का जवाब देता है आतंकवाद निधि (फंडिंग)। भारत में कई बार ऐसी फंडिंग केस सामने आई हैं जहाँ पुलिस ने बड़ी रकम को जाम किया या गिरोहों को रोक दिया। इस लेख में हम आसान भाषा में समझेंगे कि ये फंडिंग कैसे काम करती है, कौन‑कौन से तरीके इस्तेमाल होते हैं और हाल के कुछ प्रमुख मामलों का त्वरित सारांश देंगे.
आतंकवादी फंडिंग के आम रास्ते
सबसे पहले जान लें कि धन कहाँ‑कहाँ से आता है। अक्सर यह विदेशी दान, वैध व्यापार की छुपी हुई शाखा या ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के जरिए आ जाता है। कुछ समूह खुदरा दुकानों में नकद जमा करवाते हैं, जबकि दूसरे लोग चैरिटी फंड को ग़लत नाम पर इस्तेमाल करते हैं। डिजिटल युग में क्रिप्टोकरेंसी और वॉलेट भी नया साधन बन गये हैं; कम ट्रैकिंग के कारण पुलिस को पकड़ना मुश्किल हो जाता है।
देश में फाइनेंसियल इंटेलिजेंस यूनिट (FIU) हर बड़ी लेन‑देने को मॉनीटर करती है। जब कोई अकाउंट अचानक बड़े पैमाने पर ट्रांसफ़र दिखाता है, तो इसे शंका के तौर पर चिह्नित किया जाता है और आगे जांच शुरू होती है। यह प्रक्रिया तेज़ी से काम करती है क्योंकि फंडिंग रोकना आतंकवादी कार्यों को भी रोकता है।
हाल के प्रमुख केस – क्या हुआ?
2023 में मुंबई पुलिस ने एक बड़े अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को तोड़ा, जिसमें 5 करोड़ रुपये की नकद और विदेशी मुद्रा शामिल थी। जांच से पता चला कि ये पैसे दक्षिण एशियाई समूहों को सिखाने‑सिखाने वाले प्रशिक्षण कैंप के खर्चे में जा रहे थे। उसी साल दिल्ली में एक केस आया जहाँ दो व्यापारी ने अपना ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म बनाकर आतंकवादी संगठनों को ‘क्लिन’ फंड प्रदान किया। इस मामले में कोर्ट ने 10 साल की जेल और जुर्माना सुनाया।
2024 में पंजाब पुलिस ने एक छोटे शहर से जुड़े कई बैंक अकाउंट्स को जाम कर दिया, जहाँ से हर महीने लगभग 2 लाख रुपये ट्रांसफ़र हो रहे थे। यह रकम स्थानीय महाविद्यालय के छात्र समूह द्वारा ‘सुरक्षा प्रशिक्षण’ नाम से फंड इकट्ठा करने के लिए इस्तेमाल की जा रही थी। इस केस ने दिखाया कि फंडिंग सिर्फ बड़े शहरों में नहीं, छोटे कस्बों में भी चलती है।
इन मामलों की खास बात यह है कि अक्सर खबरें केवल ‘हत्याकांड’ या ‘आतंक हमला’ तक सीमित रहती हैं, जबकि फंडिंग का पता लगाना और रोकना उतना ही जरूरी है। इसलिए सरकार ने 2025 में नई पॉलिसी लागू की—सभी नकद लेन‑देनों पर रीयल‑टाइम मॉनीटरिंग, और ऑनलाइन ट्रांज़ैक्शन के लिए कड़े KYC नियम। इस कदम से कई छोटे‑छोटे केस जल्दी पकड़ में आए हैं।
आप भी फंडिंग से जुड़ी किसी असामान्य लेन‑देने को नोटिस कर सकते हैं—जैसे अचानक बड़ी रकम का जमा होना, अजीब नाम वाले अकाउंट्स या लगातार ट्रांसफ़र। ऐसी जानकारी पुलिस के हेल्पलाइन पर देना बहुत मददगार होता है। याद रखें, छोटे‑छोटे संकेतों से ही बड़े आतंकवादी नेटवर्क रोके जा सकते हैं।
आखिर में यह कहा जा सकता है कि फंडिंग को समझना और उसका ट्रैक रखना सुरक्षा का अहम हिस्सा है। अगर आप समाचार पढ़ते समय ‘धन कहाँ से आया?’ सवाल पूछते हैं, तो यही कारण हो सकता है कि सरकार लगातार इस दिशा में काम कर रही है। आगे भी ऐसे अपडेट के लिए साई समाचार पर आते रहें—हम आपको हर जरूरी जानकारी देते रहेंगे।

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