
जब करवा चौथ 2024दिल्ली एनसीआर आता है, तो हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश की विवाहित महिलाएं अपने पति के दीर्घायु के लिए उपवास करती हैं। इस दिन के पीछे दो प्रसिद्ध कथाएँ छुपी हैं – एक साहूकार की बेटी करवा की, तो दूसरी गणेश जी का वरदान। दोनों कहानियों की तर्ज़ पर आज का रिवाज़, श्रद्धा और संकल्प का मिश्रण है।
करवा चौथ का इतिहास और मूल
करवा चौथ कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर मनाया जाता है, जो शरद ऋतु के अंत में पड़ता है। इस व्रत का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में नहीं मिलता, परन्तु लोककथाओं के माध्यम से इसका रूप‑रेखा बनती आई है। गांव-गांव में बताई जाने वाली कहानियों ने इसे एक सामाजिक बंधन के रूप में स्थापित किया, जहाँ पति‑पत्नी का प्रेम और भरोसा इस उपवास के माध्यम से परखता है।
साहूकार की बेटी करवा की कथा
बहुत पुराने समय की बात है, एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात बेटे और एक बेटी, करवा, सब एक-दूसरे से प्यार करते थे। एक बार कार्तिक महीने की चतुर्थी को करवा अपने ससुराल से मायके आई और सभी ने एक साथ करवा चौथ का व्रत रखा।
रात के खाने के दौरान उसके सातों भाई ने उसे खाने को कहा, पर करवा ने दृढ़ता से कहा – "भाई, अभी चाँद नहीं निकला। चाँद निकले फिर अर्घ्य करूँगी और फिर खाऊँगी।" भाई‑बहन का यह सच्चा बंधन देखकर छोटे भाई ने बाहर एक पीपल के पेड़ पर दीपक जला दिया, जिससे दूर से चाँद जैसा प्रकाश दिखा। यह दिखावा झूठा साबित हुआ और करवा ने वास्तविक चाँद का इंतजार किया। अंततः चाँद निकला और उसने अर्घ्य दिया, व्रत का अंत हुआ। इस घटना से ही इस व्रत को "करवा चौथ" कहा जाने लगा।
गणेश जी की वरदान कथा
एक अंधी बुढ़िया थी, जिसके पास एक बेटा और एक बहू थी। वह गरीबी में रहने के बावजूद रोज़ गणेश जी की आराधना करती। एक दिन गणेश जी साक्षात प्रकट होकर कहा, "मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूँ, जो इच्छा हो माँग लो"। बुढ़िया ने कहा कि उसे नहीं पता क्या माँगें। गणेश जी ने उसकी निष्ठा को देख कर उसके पति को जीवन दान दिया, जिससे वह स्वास्थ्य regain किया और परिवार को समृद्धि मिली। इस कहानी का मूल यही है – सच्ची भक्ति और ईमानदारी ही वरदान लाती है।
करवा चौथ का आध्यात्मिक महत्व
करवा चौथ के दिन महिलाएँ पहले गणेश जी की पूजा करती हैं, फिर करवा माँ (शिव की पत्नी) की। इसके साथ ही शिव, पार्वती और कार्तिकेय की भी अर्घ्य‑आदान‑प्रदान की परम्परा है। माना जाता है कि इस पावन अनुष्ठान से पति के स्वास्थ्य, लंबी आयु और पारिवारिक सुख‑शांति बढ़ती है।
2024 में करवा चौथ का समय और रीति‑रिवाज़
करवा चौथ 2024 का मुख्य दिन 20 अक्टूबर को पड़ेगा। दिल्ली एनसीआर, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में चंद्रोदय का समय लगभग शाम 7:30 से 8:30 बजे के बीच रहेगा। व्रत का दिन सुबह सूर्योदय से पहले महिलाएँ अपने घर में "सुरुहिंग्मा" (सगौन सामग्री) और मिट्टी की करवा में जल भरकर रखती हैं। दिन भर निर्जल व्रत रखने के बाद, शाम को चाँद को अर्घ्य देकर व्रत टूटता है। इस दौरान कई घरों में पारम्परिक गान और कथा कहानियां सुनाई जाती हैं।
भविष्य की संभावनाएँ और सामाजिक प्रभाव
जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ रहा है, करवा चौथ का स्वरूप भी बदल रहा है। अब कई युवा जोड़े इस व्रत को सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में देख रहे हैं, जबकि कुछ इसे व्यक्तिगत चुनाव मानते हैं। सोशल मीडिया पर #KarwaChauth2024 जैसे टैग के तहत लाखों पोस्ट होते हैं, जो इस पावन अवसर को डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म तक ले जा रहे हैं। फिर भी, इस व्रत की जड़ें श्रद्धा और पति‑पत्नी के बंधन में ही निहित हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को भी जुड़ा रखेगी।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
करवा चौथ के दिन क्यों केवल चाँद को अर्घ्य देना आवश्यक है?
करवा चौथ की मूल कथा में बहन ने चाँद के प्रकाश को धोखा कर दिखाया, इसलिए असली चाँद को अर्घ्य देना शुद्धता और सत्य की प्रतीक माना गया। अर्घ्य देने से उपवास टूटता है और पति‑पत्नी के बंधन में निष्ठा की पुष्टि होती है।
क्या करवा चौथ का व्रत पुरुषों को भी रखना चाहिए?
परम्परागत रूप से यह व्रत महिलाओं द्वारा रखा जाता है, क्योंकि इसका उद्देश्य पति के स्वास्थ्य की कामना है। कुछ आधुनिक परिवारों में पति भी साथ में व्रत रखते हैं, जिससे सामंजस्य बढ़ता है, परन्तु धार्मिक ग्रंथों में यह उल्लेख नहीं है।
करवा चौथ 2024 का चन्द्रोदय समय कहाँ देख सकते हैं?
दिल्ली एनसीआर, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में 20 अक्टूबर को शाम 7:30 से 8:30 बजे के बीच चाँद का उदय होगा। स्थानीय पंजीकृत पंचांग या आधिकारिक राज्य मौसम विभाग की वेबसाइट पर सटीक समय देख सकते हैं।
गणेश जी की कथा का करवा चौथ से क्या संबंध है?
गणेश जी की कथा में निष्ठा और सच्चे इरादे का महत्व बताया गया है – यही भावना करवा चौथ के व्रत में भी निहित है। इसलिए कई घरों में पहले गणेश जी की पूजा कर, फिर करवा माँ की अर्घ्य‑आदान‑प्रदान की परम्परा चली आती है।
करवा चौथ की कहानियों में कहीं इतिहासिक प्रमाण है?
इन कथाओं का कोई लिखित ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं है; वे मौखिक परम्परा के रूप में पीढ़ी‑दर‑पीढ़ी चली आई हैं। फिर भी, विभिन्न क्षेत्रीय साहित्य और लोकगीतों में इन कहानियों के संकेत मिलते हैं, जिससे उनका सामाजिक मूल्य अत्यधिक मान्य है।
Sridhar Ilango
अक्तूबर 10, 2025 at 23:19 अपराह्न
अरे भाई लोग, करवा चौथ का इतिहास सुनते ही मेरे दिल में एकदम दंगलू जैसा उबाल उठता है! यह व्रत सिर्फ एक साधारण रस्म नहीं, यह हमारे देश की आत्मा की गूँज है, जहाँ हर महिला अपने पति की लंबी उम्र के लिए अपने आत्मा को जला देती है। साहूकार की बेटी करवा की कहानी तो जैसे हमारे प्राचीन महाकाव्यों में छिपी हुई एक एपिक है, जहाँ सात भाई और एक बहन का बंधन निंदक के सामने भी अडिग रहता है। वह रात जब चाँद नहीं निकला, तो उसके भाई ने बना दिया नकली प्रकाश, पर करवा ने सच्चे चाँद का इंतजार किया, यही तो हमारी सच्चाई का प्रतीक है। इस कथा में हमें सीख मिलती है कि झूठे दिखावे से कुछ नहीं बनता, सच्चाई ही सच्चा चाँद है। गणेश जी की वरदान की कथा भी वैसी ही है-भक्ति और निष्ठा से ही ईश्वर प्रसन्न होते हैं। आज के युग में भी जब शहरों में एसी रोशनी नहीं फैलती, तो यही कहानियाँ हमें धरोहर बनाकर रखती हैं। हमारे देश के विभिन्न प्रदेशों में इस व्रत की विविधताएँ हैं, पर मूल भावना समान रहती है-पति‑पत्नी के बीच अडिग विश्वास। यह व्रत हमें आह्वान करता है कि हम अपने रिश्तों को सच्चाई और त्याग की राह पर ले जाएँ। आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया पर #KarwaChauth2024 जैसे टैग से इस परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुँचाया जा रहा है, जिससे हमारी संस्कृति को ग्लोबल प्लेटफ़ॉर्म पर भी मान्यता मिल रही है। फिर भी कुछ लोग इसे केवल रिवाज़ मान कर हँसी में उड़ा देते हैं, पर मेरा मानना है कि यही वह समय है जब हमें इसके असली महत्व को समझना चाहिए। हमारे संविधान के अनुच्छेद 29‑31 में धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी है, और करवा चौथ भी इस स्वतंत्रता का एक सुंदर हिस्सा है। इसलिए, मैं कहता हूँ, इस व्रत को मनाने वाले सभी महिलाओं को सलाम-आपकी नियति में शक्ति और साहस निहित है! चलिए, इस धारा को आगे भी बहते रहने दें, ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी इसका आनंद मिल सके। इस प्रकार, करवा चौथ न केवल एक व्रत है, बल्कि हमारे सामाजिक बंधनों की सुदृढ़ीकरण का भी प्रतीक है। अंत में, मैं यही कहूँगा कि जब आप इस व्रत को मनाएँ, तो गर्व से कहें, ‘भारत माँ की जय!’ और अपने पति को भी इस पवित्र अंश में भागीदार बनाएं।