
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (DUSU) चुनाव 2025 में ABVP ने बड़ा दांव जीता—अध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव उसके पाले में गए, जबकि उपाध्यक्ष पद NSUI के राहुल झांसला के नाम रहा। अध्यक्ष के तौर पर आर्यन मान को 28,841 वोट मिले और उन्होंने NSUI की जोज़लिन चौधरी (12,645 वोट) को हराया। जीत के तुरंत बाद कैंपस में सबसे ज्यादा पूछा जाने वाला सवाल यही है: DUSU अध्यक्ष के असल अधिकार और सुविधाएं क्या हैं, और उनकी सीमाएं कहाँ तक हैं?
DUSU क्या है और अध्यक्ष की भूमिका
DUSU डीयू के दर्जनों कॉलेजों और विभागों के छात्रों का निर्वाचित प्रतिनिधि निकाय है। इसका काम प्रशासन के साथ विद्यार्थियों की बात रखना, कैंपस-स्तर के मुद्दों को एजेंडा बनाना और छात्र गतिविधियों को दिशा देना है। अध्यक्ष इस ढांचे का प्रमुख चेहरा होता है—वह छात्र समुदाय का मुख्य प्रतिनिधि, समन्वयक और वार्ताकार है।
- अध्यक्ष आमतौर पर यूनियन बैठकों की अध्यक्षता करता है और बड़े मुद्दों पर आधिकारिक ज्ञापन/नोटिस पर हस्ताक्षर करता है।
- कुलपति, डीन ऑफ स्टूडेंट्स वेलफेयर और प्रोक्तोरल टीम के साथ औपचारिक बैठकों में छात्र पक्ष रखता है और समाधान का रोडमैप तय करवाने की कोशिश करता है।
- विश्वविद्यालय और कॉलेजों में जहां-जहां छात्र प्रतिनिधियों की सीटें होती हैं, वहां नामांकन/समन्वय में भूमिका निभाता है ताकि छात्र आवाज़ समितियों तक पहुँचे।
- क्लब, सोसायटी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के वार्षिक कैलेंडर को समन्वित करता है, ताकि विश्वविद्यालय-स्तरीय आयोजन बिना टकराव के हो सकें।
- प्रदर्शन, हस्ताक्षर अभियान या खुली बैठकों जैसा लोकतांत्रिक दबाव-निर्माण भी अध्यक्ष की रणनीति का हिस्सा रहता है, जब नियमित संवाद से बात नहीं बनती।
ध्यान रहे, DUSU कोई कार्यपालक (एग्जीक्यूटिव) प्राधिकरण नहीं है। पाठ्यक्रम बदलना, फीस तय करना, परीक्षा तिथियां घोषित करना या नियुक्तियाँ करना—ये सब विश्वविद्यालय की वैधानिक संस्थाओं के दायरे में आते हैं। अध्यक्ष की ताकत मुख्यतः जन-प्रतिनिधित्व, तर्क, डेटा और कैंपस सहमति से बनती है।

अधिकार, सुविधाएं और सीमाएं: ज़मीन पर क्या होता है
कागज़ पर DUSU पदाधिकारियों की औपचारिक शक्तियां सीमित और परिभाषित हैं, और कई सुविधाएं परंपरा और प्रोटोकॉल से चलती हैं। फिर भी व्यवहार में अध्यक्ष का असर बड़ा होता है, क्योंकि वही छात्रों के मुद्दों को एजेंडा पर लाता है और प्रशासन से डेडलाइन तय करवाता है।
- सुविधाएं: DUSU कार्यालय का उपयोग, नोटिंग/डेस्पैच और आयोजन-समन्वय में सीमित प्रशासनिक सहयोग, विश्वविद्यालय आयोजनों में औपचारिक प्रोटोकॉल, और आधिकारिक पत्राचार की मान्यता।
- वित्त: कोई वेतन/मानदेय का नियम नहीं होता; स्वीकृत गतिविधियों के खर्च अक्सर बजट/रिइम्बर्समेंट प्रक्रिया से गुजरते हैं, जिनका ऑडिट होता है।
- पहुँच: डीन/प्रोक्तोर/संबंधित प्राधिकरण के साथ तेज़-तर्रार बैठकें तय कराने की क्षमता—यहीं से अधिकांश मांगें आगे बढ़ती हैं।
सीमाएं भी साफ हैं।
- अध्यक्ष न तो एडमिशन में दखल दे सकता है, न ही परीक्षाओं, रिजल्ट और अनुशासनात्मक मामलों में आदेश दे सकता है।
- यूनिवर्सिटी के नोटिफिकेशन, फीस संरचना, सिलेबस और परीक्षा दिनचर्या—ये सब वैधानिक समितियों और प्रशासन तय करते हैं।
- चुनाव के बाद भी आचरण संहिता लागू रहती है: किसी भी तरह की बाध्यता, दबाव या हिंसा स्वीकार्य नहीं; उल्लंघन पर प्रोक्तोरल कार्रवाई हो सकती है।
मांगें कैसे आगे बढ़ती हैं? आम तौर पर छात्र—कॉलेज यूनियन—DUSU—लिखित ज्ञापन—समिति/मीटिंग—ड्राफ्ट प्रस्ताव—स्वीकृति/नोटिफिकेशन—इस क्रम से प्रक्रिया चलती है। कुछ फैसले हफ्तों में आते हैं, कुछ में महीनों लगते हैं, और कई मुद्दे पायलट प्रोजेक्ट या चरणबद्ध अमल के साथ मंज़िल पर पहुँचते हैं।
2025 में एजेंडा क्या हो सकता है? हाल के वर्षों के रुझान देखें तो छात्र निम्न मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं:
- हॉस्टल सीटें, किराया और आउटस्टेशन छात्रों के लिए किफायती आवास की व्यवस्था।
- फीस और सेवा-शुल्क में पारदर्शिता; ज़रूरतमंद छात्रों के लिए फाइनेंशियल एड की समयबद्ध प्रक्रिया।
- लाइब्रेरी के घंटे बढ़ाना, परीक्षा सीज़न में अध्ययन-स्पेस की कमी दूर करना।
- कैंपस सुरक्षा और रात में सुरक्षित आवागमन; बस-पास/परिवहन समन्वय जैसी व्यावहारिक सुविधाएं।
- मेंटल हेल्थ काउंसलिंग, एंटी-हैरसमेंट सेल की सक्रियता, और पीओएसएच ढांचे की प्रभावी कार्यवाही।
छात्र इस नई टीम तक अपनी बात कैसे पहुँचाएं? सबसे असरदार तरीका—मुद्दे को डेटा के साथ लिखित में रखें, कॉलेज यूनियन और डिपार्टमेंट प्रतिनिधियों के साथ समन्वय कर DUSU कार्यालय में जमा कराएँ, प्राप्ति रसीद लें, और मीटिंग/फॉलो-अप की टाइमलाइन तय करें। सामूहिक प्रतिनिधिमंडल, सिग्नेचर ड्राइव और समस्या की ठोस डॉक्यूमेंटेशन अक्सर फैसलों को तेज करता है।
ABVP के पास तीन अहम पद और NSUI के पास उपाध्यक्ष—यानी संवाद और प्रतिस्पर्धा दोनों साथ-साथ चलेंगे। ऐसे में अध्यक्ष की असली परीक्षा यहीं है: मुद्दों को राजनीतिक शोर में खोने के बजाय कार्ययोजना, समयसीमा और पारदर्शी अपडेट के साथ आगे बढ़ाना। छात्रों के लिए भी यही समय है—अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट करें, लिखित प्रस्ताव दें और प्रक्रिया को ट्रैक करें। तभी यह जनादेश कैंपस की रोज़मर्रा की समस्याओं में वास्तविक राहत में बदलेगा।