पूर्व विदेश मंत्री के नटवर सिंह: बहुआयामी व्यक्तित्व और बिंदास बोल

के नटवर सिंह का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

के नटवर सिंह का जन्म 16 मई 1931 को राजस्थान के जैसलमेर में हुआ। वे एक समृद्ध राजपूत परिवार से थे और उनकी शिक्षा-दीक्षा प्रतिष्ठित संस्थानों में हुई। उन्होंने देहरादून के दून स्कूल और दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज में पढ़ाई की। उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से भी शिक्षा प्राप्त की।

भारतीय विदेश सेवा में प्रवेश

1953 में के नटवर सिंह भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए। उनकी पहली पोस्टिंग बीजिंग में थी। उस दौरान चीन और भारत के बीच राजनीतिक संबंधों की नाजुक स्थिति थी। सिंह ने अपनी उत्कृष्ट कूटनीति और विवेक से इन मुद्दों को बेहतरीन तरीके से संभाला। इसके बाद वे न्यूयॉर्क, लंदन, और पाकिस्तान के कराची में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे।

महत्वपूर्ण कूटनीतिक समीकरण

के नटवर सिंह के कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण कूटनीतिक समीकरण बने। इनमें सबसे प्रमुख था 1971 का भारत-सोवियत संघ समझौता। यह समझौता भारत और सोवियत संघ के बीच रणनीतिक साझेदारी का प्रतीक था और इसके बाद भारतीय विदेश नीति में नए आयाम जुड़े। नटवर सिंह ने इस समौझते में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गुट-निरपेक्ष आंदोलन

गुट-निरपेक्ष आंदोलन के गठन में भी नटवर सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने भारत के पक्ष को वैश्विक मंच पर मजबूती से प्रस्तुत किया। नटवर सिंह की सक्रिय भूमिका ने भारत को एक मजबूत और स्वतंत्र विदेश नीति अपनाने में मदद की।

राजनीतिक सफर

राजनीतिक सफर

के नटवर सिंह ने 1984 में सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया और कांग्रेस पार्टी का हिस्सा बने। वे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के करीबी माने जाते थे। 2004 में यूपीए सरकार के तहत उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया और विदेश मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण समझौतों और वार्ताओं में भाग लिया।

त्योहारों और विवादों के बीच

नटवर सिंह की जिंदगी में कई विवाद भी आए, जिनमें सबसे विशेष था इराक तेल-फॉर-फूड घोटाला। हालांकि, इस विवाद के बावजूद भी नटवर सिंह का राजनीतिक करियर बहुत ही सफल रहा। उन्होंने अपनी आत्मकथा 'वन लाइफ इज नॉट इनफ' में अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं का खुलासा किया।

लेखक के रूप में

राजनीति के अलावा नटवर सिंह एक लेखक भी थे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण किताबें लिखीं, जिनमें उनकी आत्मकथा प्रमुख है। उनके लेखन में उनकी गहन सोच और जीवन के अनुभवों की झलक मिलती है।

नटवर सिंह की विरासत

हालांकि नटवर सिंह का करियर विवादों से घिरा रहा, फिर भी उनकी कूटनीति और राजनीतिक योगदान अविस्मरणीय हैं। उन्होंने भारत की विदेश नीति को नई दिशा दी और अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन किया। उनके निधन के बाद भी उनकी छवि और उनके द्वारा किए गए कार्य भारतीय राजनीति और कूटनीति की दुनिया में गूंजते रहेंगे।

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