प्रधानमंत्री कार्यालय का हस्तक्षेप: UPSC ने रद्द किया लैटरल एंट्री भर्ती का विज्ञापन
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के निर्देश पर संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने 45 लैटरल एंट्री पदों के लिए जारी विज्ञापन को रद्द कर दिया है। यह विज्ञापन 17 अगस्त, 2024 को जारी किया गया था, जिसमें 10 संयुक्त सचिव और 35 निदेशक/उप सचिव पदों को भरने की बात कही गई थी। इस निर्णय के पीछे मुख्य कारण विपक्ष और सरकार के सहयोगी दलों द्वारा की गई तीखी आलोचना है।
विपक्षी दलों का विरोध
कांग्रेस ने इस विज्ञापन को आरक्षण प्रणाली पर हमला बताया था और इसे आरएसएस के वफादारों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाने की कोशिश करार दिया था। कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा के सहयोगी दलों जैसे लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) और जनता दल (यूनाइटेड) ने भी इन पदों के विज्ञापन में आरक्षण प्रावधान की कमी पर चिंता जताई थी। इससे यह विवाद और बढ़ गया।
संवैधानिक आदर्शों की रक्षा
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC की चेयरपर्सन प्रीती सुदन को एक पत्र लिखा, जिसमें सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने और आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों की रक्षा करने की जरूरत पर जोर दिया गया। इस पत्र ने सरकार के इस निर्णय की गंभीरता को दर्शाया। इस पत्र के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने जल्द ही हस्तक्षेप करके यह स्पष्ट कर दिया कि संविधानिक आदर्शों से किसी भी प्रकार का खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
लैटरल एंट्री योजना पर पुन:विचार
लैटरल एंट्री योजना की शुरुआत 2018 में की गई थी जिसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को सरकारी प्रशासन में शामिल करना था। लेकिन इस योजना के तहत आरक्षण प्रावधानों की अनदेखी ने इसे विवादों में डाल दिया। प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप और विज्ञापन को रद्द करने के बाद अब इस योजना पर पुन: विचार हो रहा है।
अगले विधानसभा चुनाव की भूमिका
इस निर्णय को मोदी सरकार की एक रणनीतिक चाल के रूप में देखा जा रहा है ताकि आने वाले विधानसभा चुनावों में किसी भी प्रकार की राजनीतिक असंतोष से बचा जा सके। विपक्ष और सहयोगी दलों के विरोध को मद्धम करने के लिए इस कदम को उठाना महत्वपूर्ण था।
लैटरल एंट्री के फायदे और नुकसान
लैटरल एंट्री योजना के फायदे और नुकसान पर भी बहस जारी है। इसके फायदे में विशेषज्ञता का लाभ और प्रशासन में विविधता लाना शामिल है। लेकिन इसके नुकसान में आरक्षण प्रणाली की अनदेखी और सामाजिक न्याय पर खतरा शामिल है।
विपक्षी दलों का कहना है कि लैटरल एंट्री के जरिए सरकार अपनी मर्जी के लोगों को ऊंचे पदों पर बैठाना चाहती है, जिससे समान अवसरों के अधिकार का हनन होता है। सरकार को इस योजना को लागू करने से पहले इसके सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
समाज में संदेश
लैटरल एंट्री योजना की इस विवादस्पद स्थिति ने समाज में एक संदेश भेजा है कि सामाजिक न्याय और आरक्षण के मुद्दों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह प्रधानमंत्री कार्यालय के तेज हस्तक्षेप का प्रमाण है कि सरकार समता और न्याय के मुद्दों पर संवेदनशील है।
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