सिद्धांत चतुर्वेदी की फिल्म 'युधरा' की समीक्षा: एक्शन सीक्वेंस ने बचाई फिल्म

फिल्म 'युधरा' की विस्तृत समीक्षा

बॉलीवुड की नई फिल्म ‘युधरा’ को देख कर लगा कि इसमें बहुत सारा दम था, पर कहीं न कहीं कहानी और एडिटिंग में कमी रह गई। रवि उडयावर द्वारा निर्देशित और सिद्धांत चतुर्वेदी, राघव जुयाल और मालविका मोटवानी स्टारर यह फिल्म एक एक्शन थ्रिलर के रूप में सामने आई है। कहानी एक ऐसे युवक युधरा के इर्द-गिर्द घूमती है जिसे जन्म के समय हुए कठिनाइयों के कारण गुस्से की समस्या है। उसके पिता, जो एक पुलिस अफसर थे, ने एक ड्रग रैकेट पकड़ा जिसका सरगना था बदनाम गैंगस्टर फरोजे। इसी कारण युधरा के माता-पिता की हत्या हो जाती है।

फिल्म की शुरुआत काफी दमदार होती है जिसमें युधरा के बैकस्टोरी को अच्छी तरह से दिखाया गया है। उसके पिता के सहयोगी और मित्र रहमान उसे गोद लेकर हीरो बनाते हैं। कुछ सालों बाद, युधरा एक अंडरकवर एजेंट बन जाता है और फरोजे के ड्रग कार्टेल में घुसपैठ कर लेता है। सिद्धांत चतुर्वेदी ने मुख्य भूमिका में अपनी ऐक्टिंग से दर्शकों का दिल जीत लिया, विशेषकर एक्शन सीक्वेंस में जहां उनका प्रदर्शन बेहतरीन है।

एक्शन और निर्देशन का जादू

फिल्म के एक्शन सीक्वेंस दर्शकों को सबसे ज्यादा मुग्ध करते हैं। एक्शन निर्देशक फेडेरिको क्यूवेवा ने हाथों की लड़ाई के दृश्यों को इस तरह से फिल्माया है कि वे असली लगते हैं। सिद्धांत ने इन दृश्यों में अपनी फिटनेस और मार्शल आर्ट्स के हुनर का खूब प्रदर्शन किया है। एक्शन के मामले में यह फिल्म दर्शकों को निराश नहीं करती।

कहानी और पात्रों की कमी

हालांकि, फिल्म की कहानी में नवीनता की कमी है। फिल्म की गति धीमी है और पात्रों का विकास अधूरा-सा लगता है। कहानी कही से भी बहुत ही सहज और अनुमानित लगती है, जिससे दर्शकों की रूचि जल्दी खत्म हो जाती है। राघव जुयाल, मालविका मोहनन, राम कपूर और गजराज राव जैसे सहायक कलाकारों का प्रदर्शन तो अच्छा है, परंतु इनका उपयोग ठीक से नहीं किया गया है।

सम्पादन की खामियाँ

फिल्म की लंबाई भी एक बड़ा मुद्दा है। संपादन विभाग को यहां काफी आलोचना झेलनी पड़ी क्योंकि फिल्म को करीब 15 मिनट और छोटा किया जा सकता था जिससे दर्शकों को फिल्म देखने का अनुभव अच्छा लगता। लंबाई के कारण बीच-बीच में दर्शकों का ध्यान भटकता है और वे बेचैन हो जाते हैं।

संगीत और स्वरों का मिश्रण

फिल्म के संगीत विभाग में भी कमी नजर आई। शंकर एहसान लॉय द्वारा दिया गया संगीत कहानी के साथ मेल नहीं खाता, जिसे दर्शकों ने ज्यादा सराहा नहीं। केवल एक गीत 'सोहिनी लगदी' ही अपने मधुर स्वरों से ध्यान खींच पाता है, बाकी गाने भूलने योग्य ही साबित होते हैं।

कुल मिलाकर, 'युधरा' ऐसी फिल्म है जिसमें बहुत सारी संभावनाएँ थीं परंतु कहानी की गरीबी और खराब संपादन के चलते इसे पूरा उपयोग नहीं किया जा सका। सिद्धांत चतुर्वेदी का एक्शन प्रदर्शन और फिल्म की शुरूआती कहानी देखने लायक हैं, परंतु सामूहिक रूप में यह फिल्म एक औसत दर्जे की साबित होती है। मनोरंजन के लिए अगर एक्शन आपका प्रमुख झुकाव है, तो 'युधरा' देखी जा सकती है, परंतु एक दमदार कहानी और संचालन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।

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