पेरिस पैरालिंपिक्स में सचिन खिलारी की सफलता
पेरिस 2024 पैरालिंपिक्स में भारतीय पैराथलीट सचिन खिलारी ने पुरुष शॉट पुट F46 इवेंट में सिल्वर पदक जीतकर भारतीय खेल प्रेमियों का गर्व बढ़ाया है। 34 वर्षीय सचिन खिलारी ने अपने दूसरे प्रयास में 16.32 मीटर का शानदार थ्रो किया और एशियाई रिकॉर्ड बनाते हुए इस सफलता को हासिल किया। उनसे आगे रहे केवल कनाडा के ग्रेग स्टुअर्ट जिन्होंने 16.38 मीटर के सीजन-बेस्ट थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीता। क़्रोएशिया के लुका बाकोविक ने 16.27 मीटर के व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के साथ कांस्य पदक प्राप्त किया।
भारत के पिछले रिकॉर्ड को टूटती हुई उपलब्धि
सचिन खिलारी के इस शानदार प्रदर्शन के साथ ही भारत का कुल पदक संख्या 21 तक पहुँच गया है, जो कि टोक्यो 2020 पैरालिंपिक्स में जीते गए 19 पदकों को पार कर चुका है। भारत के अन्य एथलीट, मोहम्मद यासर और रोहित कुमार, ईवेंट में क्रमशः 14.21 मीटर और 14.10 मीटर के थ्रो के साथ आठवें और नौवें स्थान पर रहे।
सचिन खिलारी का जीवन और संघर्ष
सचिन खिलारी के जीवन की कहानी प्रेरणादायक है। बचपन में हुए एक दुर्घटना में अपने बाएं हाथ को खोने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर रहे सचिन अब छात्रों को पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षाओं के लिए भी तैयार करते हैं। 2015 में उन्हें पैरास्पोर्ट्स से परिचित कराया गया और तब से वे एशियाई पैरा गेम्स 2023 में दो बार स्वर्ण पदक जीत चुके हैं।
सचिन खिलारी ने अपने प्रदर्शन पर संतोष जताया और भविष्य में ग्रेग स्टुअर्ट को हराने का दृढ़ संकल्प व्यक्त किया। पुरुष शॉट पुट F46 इवेंट में उनका यह दूसरा पदक है, जिसमें वे पहले भी कई बार उत्कृष्ट प्रदर्शन कर चुके हैं।
F46 इवेंट और उसकी विशेषताएं
F46 क्लासिफिकेशन उन एथलीट्स के लिए होती है जो हाथ की विकलांगता से प्रभावित होते हैं। इनमें ऊपर या नीचे एल्बो एंप्युटेशन वाले एथलीट्स शामिल होते हैं। सचिन खिलारी के इस उपलब्धि ने पैरालिंपिक्स में भारत के 11वें पदक को चिह्नित किया है, जो कि एक बड़ी सफलता है।
इस उपलब्धि के साथ सचिन खिलारी ने न सिर्फ अपने देश का चेहरा गर्व से ऊंचा किया है, बल्कि उन लोगों के लिए भी प्रेरणा बने हैं जो अपनी व्यक्तिगत कठिनाइयों के बावजूद सफलता की ऊँचाईयों को छूने की क्षमता रखते हैं। उनका संघर्ष और मेहनत उन सभी के लिए एक मिसाल है जो जीवन में कुछ बड़ा हासिल करने की चाह रखते हैं।
युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा
सचिन खिलारी का संघर्ष और उनकी उपलब्धियां प्रत्येक युवा एथलीट के लिए प्रेरणा हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि कोई भी बाधा इतनी बड़ी नहीं होती कि उसे पार नहीं किया जा सके। मेहनत, दृढ़ संकल्प और जुनून की मदद से हर सपने को साकार किया जा सकता है।
आशा है कि पेरिस 2024 पैरालिंपिक्स में प्राप्त इस सफलता से और भी लोग प्रेरित होंगे और भारतीय पैरास्पोर्ट्स को एक नया आयाम मिलेगा।
15 टिप्पणि
fatima mohsen
सितंबर 6, 2024 at 22:25 अपराह्न
हमारे भारतीय खिलाड़ियों को इतना निराशा में नहीं छोड़ा जाना चाहिए! अगर ये सिल्वर है तो गोल्ड कहाँ है? हमारे नेता कहाँ हैं? 😤
Aditya Ingale
सितंबर 7, 2024 at 09:02 पूर्वाह्न
ये लड़का बस एक थ्रो नहीं, एक जिंदगी का बदलाव है। एक हाथ के बावजूद जो दुनिया को दिखा दिया कि ताकत बाजू में नहीं, दिल में होती है। 💪❤️
Ali Zeeshan Javed
सितंबर 9, 2024 at 01:31 पूर्वाह्न
देखो भाई, अगर ये एक देश में होता तो लोग इसे ट्रेंडिंग पर डाल देते। लेकिन हमारे देश में तो जब तक बड़ा नहीं हो जाता, तब तक कोई नहीं देखता। सचिन के लिए शुभकामनाएँ। 🙏
Aarya Editz
सितंबर 10, 2024 at 16:31 अपराह्न
क्या हमने कभी सोचा कि एक व्यक्ति जिसके हाथ नहीं हैं, वो कैसे एक भारी गेंद को इतनी दूर फेंक सकता है? ये सिर्फ शारीरिक शक्ति नहीं, ये आत्मविश्वास का जादू है।
sumit dhamija
सितंबर 12, 2024 at 01:29 पूर्वाह्न
ये खिलाड़ी ने न सिर्फ पदक जीता, बल्कि हम सबके लिए एक नया मानक बना दिया। जो लोग कहते हैं 'मैं नहीं कर सकता', उन्हें ये देखना चाहिए।
Srujana Oruganti
सितंबर 13, 2024 at 10:12 पूर्वाह्न
अच्छा लगा लेकिन अब बस इतना ही। अगली बार फिर से बताना।
Shreya Prasad
सितंबर 14, 2024 at 00:14 पूर्वाह्न
सचिन खिलारी की इस उपलब्धि के पीछे लाखों घंटों की अकेली प्रतिबद्धता छिपी है। उनके लिए एक बहुत बड़ी तारीफ।
Prathamesh Potnis
सितंबर 14, 2024 at 15:25 अपराह्न
यह उपलब्धि केवल एक खिलाड़ी की नहीं, बल्कि पूरे भारत की है। हमें इसे अपनी नीति में शामिल करना चाहिए।
Nithya ramani
सितंबर 15, 2024 at 05:06 पूर्वाह्न
इस लड़के ने जो किया, वो बस एक गेंद फेंकना नहीं, बल्कि दुनिया को दिखाया कि असमर्थता का मतलब असमर्थ नहीं होता।
ritesh srivastav
सितंबर 16, 2024 at 05:04 पूर्वाह्न
सिर्फ सिल्वर? अगर हमारे खिलाड़ियों को सही तरीके से तैयार किया जाता तो गोल्ड तो बस एक फॉर्मलिटी होती।
Pranav s
सितंबर 17, 2024 at 00:34 पूर्वाह्न
ये लड़का तो बस एक मैकेनिक था और अब दुनिया का ध्यान खींच रहा है। बस ये देखो कि कैसे एक आम इंसान असामान्य बन जाता है।
Rahul Kumar
सितंबर 18, 2024 at 16:13 अपराह्न
मैंने अपने दोस्त को ये वीडियो भेजा था जो हमेशा कहता है 'मैं थक गया हूँ'। अब वो शांत है। बस एक थ्रो ने सब कुछ बदल दिया।
Žééshañ Khan
सितंबर 19, 2024 at 17:46 अपराह्न
इस पदक की गणना करने से पहले यह सुनिश्चित करें कि भारत के खिलाड़ियों को उचित अनुदान मिल रहा है। अन्यथा यह सिर्फ एक नाटक है।
GITA Grupo de Investigação do Treinamento Psicofísico do Atuante
सितंबर 20, 2024 at 20:09 अपराह्न
क्या आपने कभी सोचा कि जब एक व्यक्ति अपने हाथ खो देता है, तो उसके लिए एक गेंद फेंकना एक असंभव कार्य हो सकता है? और फिर भी वह दुनिया को चुनौती देता है। यह न केवल एक खेल है, यह एक जीवन दर्शन है।
Sita De savona
सितंबर 5, 2024 at 22:46 अपराह्न
अरे भाई ये तो बस एक थ्रो था, बाकी सब तो बस फोटो शूटिंग है।