दुर्गा पूजा – तिथि, रीति‑रिवाज़ और विशेषताएँ
जब हम दुर्गा पूजा, भारत में माँ दुर्गा को सम्मानित करने वाला प्रमुख हिन्दू त्योहार. Also known as शैलपुत्री व्रत, it celebrates शक्ति की जीत। यह समारोह नवरात्रि, आठ रातों और नौ दिन की श्रृंखला जहाँ देवी के विभिन्न रूपों की पूजा होती है का अभिन्न हिस्सा है और विशेष रूप से अष्टमी, दुर्गा की अष्टमी रूप की पूजा करने का प्रमुख दिन पर केंद्रित रहता है। इसके अलावा, कई रीति‑रिवाज़ शक्तिपूजन, शत्रु बुराई से रक्षा के लिये अग्नि‑आधारित अनुष्ठान पर आधारित होते हैं, जिससे भक्तों का भावनात्मक जुड़ाव और सामुदायिक ऊर्जा बढ़ती है।
दुर्गा पूजा का मुख्य उद्देश्य माँ दुर्गा की शक्ति को साकार करना है, इसलिए इस दौरान दुर्गा पूजा के भक्त महालक्ष्मी, काली और अग्नि के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं। अष्टमी को आमतौर पर बहुत शुद्ध नवरात्रि के साथ मनाया जाता है; इस दिन शैलपुत्री रूप में दुर्गा को अष्टकोण में स्थापित किया जाता है और कंडिल, धूप और फल-भोज से पूजा को पूरक किया जाता है। कई क्षेत्रों में पैंतीस दिनों तक चलने वाली ‘अवधि’ के दौरान ‘त्रिपुरा सांभू’ और ‘कुमार’ की कथा को संगीत, नृत्य और मंचन के साथ दर्शाया जाता है, जिससे त्योहार का सांस्कृतिक आयाम भी मजबूत होता है।
भक्तों के लिए इस उत्सव का सामाजिक पहलू भी महत्वपूर्ण है। शाकाहारी उपवास, विशेष व्रत‑भोजन जैसे ‘भोग’ और ‘प्रदक्षिणा’ के साथ स्थानीय मंदिरों में ‘भंडारा’ आयोजित किया जाता है। कई शहरों में दुर्गा मैंदिर आयोजित होते हैं जहाँ हर शाम सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन‑कीर्तन और नवरात्रि के गीत सुनाए जाते हैं। इस दौरान महिलाओं का हाथ में ‘त्रिशूल’ और ‘शंख’ लेकर रिवाजों में भाग लेना, पुरुषों की ओर से ‘परोस’ और ‘अस्थि’ को सजाना प्रमुख परम्परा है। सभी ये पहलू मिलकर दुर्गा पूजा को न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक बनाते हैं।
अब आप नीचे सूचीबद्ध लेखों में दुर्गा पूजा के विभिन्न पहलुओं—जैसे तिथि‑विवरण, पूजा‑विधि, regional variations, और नवीनतम समाचार—को विस्तृत रूप में पढ़ सकते हैं। इस संग्रह में आपको त्योहार की आधुनिक प्रवृत्तियों से लेकर पारंपरिक रीति‑रिवाज़ तक सब कुछ मिलेगा, जिससे आपका ज्ञान और भी गहरा होगा।

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